Bandar-ki-sujhbujh : बंदर की सूझबूझ

पढ़े कैसे बचाई बंदर नें अपनी जान

एक बार एक जंगल मे एक बंदर का परिवार रहता था........जंगल मे हर चीज उपलब्ध थे, मगर बंदरो के लिए कई सारी चीजों की मनाही थी,सारे बंदर एक तालाब के ठीक सामने वाले पेद पर रहते थे,,,और उस तालाब मे ढेर सारे मगरमछ रहते थे,

अगर गलती से कोई बंदर निचे रह जाता तो मगर उन्हें अपना निवाला बना लेता,
बंदर की माँ नें अपने बच्चे क़ो बताया की आज तुम्हारा जन्मदिन है.....बंदर बहोत खुश हूआ, उत्साह के कारन वह तालाब के सामने केले और संतरे के गाछ से फल तोड़ने निकल पड़ा,

उसे लगा वह आज उसका जन्मदिन है मगरमछ उसका कोई नुकसान नहीँ करेंगे, वह लगातार संटर और केले खाता रहा,

बंदर की थी मुश्किल मे जान

निचे तालाब मे पड़े मगरमछ उसे क़िसा करते देख रहे थे, और इंतजार मे थे की जैसे हीं वह बंदर निचे आये तो मै उसको अपना निवाला बना लू,

बंदर का पेट पुरी तरह भर गया.....उसे आराम की जरूरत थी,मगर सबसे बड़ी मुसीबत थी मगरमछ से भरे तालाब क़ो लाँघने की,

इधर से उसके परिवार के सभी सदस्य उसे हीं देख रहे थे की कैसे वह वापस आएगा,और अपनी आवाज मे जोर जोर से चित्कार कर रहे थे,,,,,

बंदर की साँस अटकी पड़ी थी,खाने का तो खा लिया मगर अब उतनी दूर छलांग लगाना उसके लिए मुमकिन नहीँ रहा,,

अब वह करें तो क्या करें...उसे कोई तरकीब भी नहीँ सूझ रही थी......अचानक उसे तालाब के बीचोबीच लकड़ी का एक गठठर तैरता दिखा,,,,उसने मन हीं मन नाप झोख किया,,,,और पहली छलांग उस लकड़ी के गठठर पर लगाई,और दूसरी अपनी पेड पर.......

इस तरह वह अपने पेद पर वापस आ सका, अगर वह आज अपनी समझ न दिखाता तो मगरमच्छ का निवाला बन जाता मगर उसने सूझ बुझ से काम ली....और अपने परिवार के पास वापस लौट सका,


शिक्षा :-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की मुश्किल हालात मे भी हमें अपनी समझदारी से काम लेना चाहिए

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